*इतिहास भाग-3*
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✡ *तीसरा दिन* ✡
🔘 *_प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत_* 🔘
प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के तीन महत्वपूर्ण स्रोत हैं -
1. पुरातात्त्विक स्रोत
2. साहित्यिक स्रोत
3. विदेशी यात्रियों का विवरण
🔅▪ *पुरातात्त्विक स्रोत* ▪🔅
प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन के लिए पुरातात्त्विक स्रोत सर्वाधिक प्रमाणिक है। इनमे मुख्यतः खुदाई में निकली सामग्री, अभिलेख, सिक्के, स्मारक, ताम्रपत्र, भवन, मूर्तियाँ चित्रकारी आदि आते हैं।
▪ *अभिलेख* :-
भारत में अधिकतर अभिलेख शिलाओं, स्तम्भों, गुहाओं, दीवारों, प्रतिमाओं, ताम्र पत्रों एवं सिक्कों पर खुदे हुए मिले हैं। सबसे प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के *बोगजकोई*नामक स्थान से 1400 ई.पू. का मिला हैं। इसमें वैदिक देवताओं *मित्र, वरूण, इन्द्र और नासत्य* के मिले हैं।
🔸 भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के माने जाते हैं जो तीसरी शताब्दी ई.पू. के हैं। कुछ विद्वानों ने बस्ती (उत्तर प्रदेश) में प्राप्त पिप्रा कलशलेख और अजमेर में प्राप्त बड़ली अभिलेख को अशोक से भी पहले का बताया हैं।
▪ प्रारम्भिक अभिलेख प्राकृत भाषा में हैं। प्रथम संस्कृत अभिलेख शकक्षत्रप रूद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख हैं। यह संस्कृत भाषा में सबसे बड़ा अभिलेख हैं। यह दूसरी सदी ईस्वी का है।
▪सबसे पुराने अभिलेख हड़प्पा की मुहरों पर मिलते हैं किन्तु इन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
▪मिस्र में अल - अमर्ना नामक स्थान से कुछ मिट्टी की मुहरें मिली हैं। जिन पर बेबोलोनियाई नरेशो के नाम हैं।
▪ गुप्त और गुप्तोतर काल के अधिकांश अभिलेख संस्कृत में लिखे गए हैं।
▪राजा मिनेन्डर के अभिलेख खरोष्ठी लिपि व प्राकृत भाषा में हैं।
▪ बेसनगर से यूनानी राजदूत हेलियोडोरस का गरूड़ ध्वज स्तम्भ लेख प्राप्त हुआ है। जिसमें द्वितीय शताब्दी ई.पू. में भारत में भागवत धर्म के विकास की जानकारी मिलती है। इसमें ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा का प्रयोग हुआ है।
▪मध्य प्रदेश के एरण से वराह प्रतिमा पर हूणराज तोरमाण का लेख मिला है।
▪ भारत में सबसे अधिक अभिलेख मैसूर (कर्नाटक) में मिले हैं।
▪ ईरानी सम्राट दारा से प्रभावित होकर ही मौर्य सम्राट अशोक ने अभिलेख जारी करवाये।
▪ अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है। केवल पश्चिमोत्तर में शहबाजगढ़ी व मानसेहरा अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है। तक्षशिला व लघमान से अरेमाईक लिपि में। कन्धार के पास शरा-ए-कुना में युनानी (ग्रीक) तथा अरेमाईक लिपि में लिखा द्विभाषीय अभिलेख मिला है।
▪ खरोष्ठी लिपि ईरान में प्रचलित अरेमाईक लिपि से विकसित हुई हैं।
▪ अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत भाषा हैं।
▪ अशोक के अभिलेखों की सर्वप्रथम खोज 1750 ई. में टीफेन्थैलर ने की। 1837 ई. में जेम्स प्रिन्सेप को अशोक के अभिलेखों की ब्राह्मी लिपि पढ़ने में सफलता मिली।
🔘 *सिक्के* 🔘
🔅 सिक्कों के अध्ययन को मुद्रा शास्त्र (Numismatic) कहा जाता है।
🔅भारत के आरम्भिक सिक्के आहत सिक्के (पंचमार्क सिक्के) हैं जो लेख रहित हैं तथा ई. पू. पाँचवी सदी के है। ठप्पा मारकर बनाये जाने के कारण इन्हें आहत मुद्रा कहते हैं। इन पर मछली, पहाड़, पेड़, हाथी, अर्द्ध चन्द्र, सान्ड आदि चिन्ह पंच करके ठप्पा लगाकर बनाये जाते थे। ये सिक्के अधिकतर चाँदी के बने होते थे।
🔅 धातु से बने सिक्के 5वीं, 6ठीं शताब्दी ई. पू. के पहले के नहीं मिले हैं।
🔅 सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने 1835 ई. में इन सिक्कों को आहत सिक्कों का नाम दिया।
🔅 चन्द्र गुप्त मौर्य के शासन काल में ही सिक्कों के निर्माण पर राजकीय नियन्त्रण कायम हुआ। मौर्य काल से पूर्व सिक्के मुख्यतः व्यापारिक संगठनों - श्रेणी, निगम आदि द्वारा बनाए जाते थे। वैशाली से श्रेणियों द्वारा निर्मित पंचमार्क सिक्के मिले हैं।
🔅 कौटिल्य के अर्थशास्त्र में टकसाल का उल्लेख हुआ है। मौर्य काल में मुद्रा व टकसाल के अध्यक्ष को लक्षणाध्यक्ष कहा जाता था, जबकि रूपदर्शक नामक अधिकारी मुद्रा का परीक्षण करता था।
🔅 सर्वाधिक आहत सिक्के मौर्यकालीन हैं। प्रारम्भ से लेकर मौर्य काल तक सर्वाधिक आहत सिक्के पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार से मिले हैं।
🔅 ग्रीक प्रभाव के कारण भारत में लेख वाले सिक्कों का प्रचलन हुआ।
🔅 भारत में सर्वप्रथम लेखयुक्त सोने के सिक्के इंडो - ग्रीक शासकों ने जारी किये। वृहद स्तर पर कुषाणों ने सोने के सिक्के चलाये तथा भारत में सर्वाधिक स्वर्ण मुद्रायें गुप्त शासकों ने चलाई। कुषाण शासकों में विम कडफिसस ने सर्वप्रथम विशुद्ध सोने के सिक्के चलाये।
🔅 सर्वाधिक सिक्के मौर्योतर काल के मिलते हैं जो सीसे, पोटीन, ताँबा, चाँदी, काँसे व सोने के सिक्के हैं। सीसे व पोटीन के सिक्के सातवाहन शासकों ने चलाये।
🔅 इंडो - ग्रीक शासकों ने भारत में पहली बार सिक्कों पर शासकों के नाम, देवी देवताओं की आकृतियां और लेख वाले सिक्के चलाने की प्रथा शुरू की।
🔅 गुप्तोतर काल में सिक्कों का प्रचलन बहुत कम हो गया था।
🔅 समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसे वीणा बजाते दिखाया गया है। जिससे उसका संगीत प्रेम प्रकट होता है।
🔅 सातवाहन शासक यज्ञश्री शातकर्णी के सिक्कों पर जलपोत उत्कीर्ण होने से उसका समुद्र प्रेम व समुद्र विजय का अनुमान लगाया जाता है।
🔅 चन्द्र गुप्त द्वितीय ने गुप्त शासकों में सर्वप्रथम चाँदी के सिक्के चलावाए।
🔅 गुप्त काल में सोने के सिक्कों को *दीनार* तथा चाँदी के सिक्कों को *रूपक* कहते थे।
🔅 गुप्त काल में सामान्य लेन देन के लिए कौड़ियों का प्रयोग होता था।
🔅 बसाढ़ से प्राप्त मिट्टी की मुहरों से व्यापारिक श्रेणियों का ज्ञान होता है।
🔅▪🔅 अभिलेख व सिक्कों के अतिरिक्त मूर्तियों, स्मारकों, भवनों, मन्दिरों, गुफा चित्रों आदि से भी प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी मिलती है।
🔅▪ प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से प्रारम्भ होता है। कुषाण कालीन गान्धार कला पर विदेशी प्रभाव है, जबकि मथुरा कला स्वदेशी हैं।
🔅सैन्धव कालीन मुहरों से उनकी धार्मिक अवस्थाओं का ज्ञान होता है।
🔘 *_साहित्यिक स्रोत_* 🔘
साहित्यिक स्रोत दो प्रकार के है -
1. धार्मिक साहित्य
2. लौकिक साहित्य
💮 धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर साहित्य सम्मिलित हैं।
_ब्राह्मण साहित्य में 👉 वेद, उपनिषद, महाकाव्य, पुराण, स्मृति ग्रन्थ आदि आते हैं।_
_ब्राह्मणेतर साहित्य में 👉 बौद्ध व जैन साहित्य की रचना शामिल हैं।_
_लौकिक साहित्य में ऐतिहसिक ग्रन्थ, जीवनियाँ, साहित्यिक रचनाएँ आदि शामिल हैं।_
(साहित्यिक रचनाओं की विस्तार से चर्चा कल के अंक में 🙏)
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✡ *तीसरा दिन* ✡
🔘 *_प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत_* 🔘
प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के तीन महत्वपूर्ण स्रोत हैं -
1. पुरातात्त्विक स्रोत
2. साहित्यिक स्रोत
3. विदेशी यात्रियों का विवरण
🔅▪ *पुरातात्त्विक स्रोत* ▪🔅
प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन के लिए पुरातात्त्विक स्रोत सर्वाधिक प्रमाणिक है। इनमे मुख्यतः खुदाई में निकली सामग्री, अभिलेख, सिक्के, स्मारक, ताम्रपत्र, भवन, मूर्तियाँ चित्रकारी आदि आते हैं।
▪ *अभिलेख* :-
भारत में अधिकतर अभिलेख शिलाओं, स्तम्भों, गुहाओं, दीवारों, प्रतिमाओं, ताम्र पत्रों एवं सिक्कों पर खुदे हुए मिले हैं। सबसे प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के *बोगजकोई*नामक स्थान से 1400 ई.पू. का मिला हैं। इसमें वैदिक देवताओं *मित्र, वरूण, इन्द्र और नासत्य* के मिले हैं।
🔸 भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के माने जाते हैं जो तीसरी शताब्दी ई.पू. के हैं। कुछ विद्वानों ने बस्ती (उत्तर प्रदेश) में प्राप्त पिप्रा कलशलेख और अजमेर में प्राप्त बड़ली अभिलेख को अशोक से भी पहले का बताया हैं।
▪ प्रारम्भिक अभिलेख प्राकृत भाषा में हैं। प्रथम संस्कृत अभिलेख शकक्षत्रप रूद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख हैं। यह संस्कृत भाषा में सबसे बड़ा अभिलेख हैं। यह दूसरी सदी ईस्वी का है।
▪सबसे पुराने अभिलेख हड़प्पा की मुहरों पर मिलते हैं किन्तु इन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
▪मिस्र में अल - अमर्ना नामक स्थान से कुछ मिट्टी की मुहरें मिली हैं। जिन पर बेबोलोनियाई नरेशो के नाम हैं।
▪ गुप्त और गुप्तोतर काल के अधिकांश अभिलेख संस्कृत में लिखे गए हैं।
▪राजा मिनेन्डर के अभिलेख खरोष्ठी लिपि व प्राकृत भाषा में हैं।
▪ बेसनगर से यूनानी राजदूत हेलियोडोरस का गरूड़ ध्वज स्तम्भ लेख प्राप्त हुआ है। जिसमें द्वितीय शताब्दी ई.पू. में भारत में भागवत धर्म के विकास की जानकारी मिलती है। इसमें ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा का प्रयोग हुआ है।
▪मध्य प्रदेश के एरण से वराह प्रतिमा पर हूणराज तोरमाण का लेख मिला है।
▪ भारत में सबसे अधिक अभिलेख मैसूर (कर्नाटक) में मिले हैं।
▪ ईरानी सम्राट दारा से प्रभावित होकर ही मौर्य सम्राट अशोक ने अभिलेख जारी करवाये।
▪ अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है। केवल पश्चिमोत्तर में शहबाजगढ़ी व मानसेहरा अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है। तक्षशिला व लघमान से अरेमाईक लिपि में। कन्धार के पास शरा-ए-कुना में युनानी (ग्रीक) तथा अरेमाईक लिपि में लिखा द्विभाषीय अभिलेख मिला है।
▪ खरोष्ठी लिपि ईरान में प्रचलित अरेमाईक लिपि से विकसित हुई हैं।
▪ अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत भाषा हैं।
▪ अशोक के अभिलेखों की सर्वप्रथम खोज 1750 ई. में टीफेन्थैलर ने की। 1837 ई. में जेम्स प्रिन्सेप को अशोक के अभिलेखों की ब्राह्मी लिपि पढ़ने में सफलता मिली।
🔘 *सिक्के* 🔘
🔅 सिक्कों के अध्ययन को मुद्रा शास्त्र (Numismatic) कहा जाता है।
🔅भारत के आरम्भिक सिक्के आहत सिक्के (पंचमार्क सिक्के) हैं जो लेख रहित हैं तथा ई. पू. पाँचवी सदी के है। ठप्पा मारकर बनाये जाने के कारण इन्हें आहत मुद्रा कहते हैं। इन पर मछली, पहाड़, पेड़, हाथी, अर्द्ध चन्द्र, सान्ड आदि चिन्ह पंच करके ठप्पा लगाकर बनाये जाते थे। ये सिक्के अधिकतर चाँदी के बने होते थे।
🔅 धातु से बने सिक्के 5वीं, 6ठीं शताब्दी ई. पू. के पहले के नहीं मिले हैं।
🔅 सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने 1835 ई. में इन सिक्कों को आहत सिक्कों का नाम दिया।
🔅 चन्द्र गुप्त मौर्य के शासन काल में ही सिक्कों के निर्माण पर राजकीय नियन्त्रण कायम हुआ। मौर्य काल से पूर्व सिक्के मुख्यतः व्यापारिक संगठनों - श्रेणी, निगम आदि द्वारा बनाए जाते थे। वैशाली से श्रेणियों द्वारा निर्मित पंचमार्क सिक्के मिले हैं।
🔅 कौटिल्य के अर्थशास्त्र में टकसाल का उल्लेख हुआ है। मौर्य काल में मुद्रा व टकसाल के अध्यक्ष को लक्षणाध्यक्ष कहा जाता था, जबकि रूपदर्शक नामक अधिकारी मुद्रा का परीक्षण करता था।
🔅 सर्वाधिक आहत सिक्के मौर्यकालीन हैं। प्रारम्भ से लेकर मौर्य काल तक सर्वाधिक आहत सिक्के पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार से मिले हैं।
🔅 ग्रीक प्रभाव के कारण भारत में लेख वाले सिक्कों का प्रचलन हुआ।
🔅 भारत में सर्वप्रथम लेखयुक्त सोने के सिक्के इंडो - ग्रीक शासकों ने जारी किये। वृहद स्तर पर कुषाणों ने सोने के सिक्के चलाये तथा भारत में सर्वाधिक स्वर्ण मुद्रायें गुप्त शासकों ने चलाई। कुषाण शासकों में विम कडफिसस ने सर्वप्रथम विशुद्ध सोने के सिक्के चलाये।
🔅 सर्वाधिक सिक्के मौर्योतर काल के मिलते हैं जो सीसे, पोटीन, ताँबा, चाँदी, काँसे व सोने के सिक्के हैं। सीसे व पोटीन के सिक्के सातवाहन शासकों ने चलाये।
🔅 इंडो - ग्रीक शासकों ने भारत में पहली बार सिक्कों पर शासकों के नाम, देवी देवताओं की आकृतियां और लेख वाले सिक्के चलाने की प्रथा शुरू की।
🔅 गुप्तोतर काल में सिक्कों का प्रचलन बहुत कम हो गया था।
🔅 समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसे वीणा बजाते दिखाया गया है। जिससे उसका संगीत प्रेम प्रकट होता है।
🔅 सातवाहन शासक यज्ञश्री शातकर्णी के सिक्कों पर जलपोत उत्कीर्ण होने से उसका समुद्र प्रेम व समुद्र विजय का अनुमान लगाया जाता है।
🔅 चन्द्र गुप्त द्वितीय ने गुप्त शासकों में सर्वप्रथम चाँदी के सिक्के चलावाए।
🔅 गुप्त काल में सोने के सिक्कों को *दीनार* तथा चाँदी के सिक्कों को *रूपक* कहते थे।
🔅 गुप्त काल में सामान्य लेन देन के लिए कौड़ियों का प्रयोग होता था।
🔅 बसाढ़ से प्राप्त मिट्टी की मुहरों से व्यापारिक श्रेणियों का ज्ञान होता है।
🔅▪🔅 अभिलेख व सिक्कों के अतिरिक्त मूर्तियों, स्मारकों, भवनों, मन्दिरों, गुफा चित्रों आदि से भी प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी मिलती है।
🔅▪ प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से प्रारम्भ होता है। कुषाण कालीन गान्धार कला पर विदेशी प्रभाव है, जबकि मथुरा कला स्वदेशी हैं।
🔅सैन्धव कालीन मुहरों से उनकी धार्मिक अवस्थाओं का ज्ञान होता है।
🔘 *_साहित्यिक स्रोत_* 🔘
साहित्यिक स्रोत दो प्रकार के है -
1. धार्मिक साहित्य
2. लौकिक साहित्य
💮 धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर साहित्य सम्मिलित हैं।
_ब्राह्मण साहित्य में 👉 वेद, उपनिषद, महाकाव्य, पुराण, स्मृति ग्रन्थ आदि आते हैं।_
_ब्राह्मणेतर साहित्य में 👉 बौद्ध व जैन साहित्य की रचना शामिल हैं।_
_लौकिक साहित्य में ऐतिहसिक ग्रन्थ, जीवनियाँ, साहित्यिक रचनाएँ आदि शामिल हैं।_
(साहित्यिक रचनाओं की विस्तार से चर्चा कल के अंक में 🙏)
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